हर दिन कि शुरुआत नयी उम्मीद के साथ करती हूँ ,
सोचती कुछ ,कर कुछ और जाती हूँ .
अब तो सोचने कि सोच से भी डर लगता हैं ,
सपने तो सबके टूटते हैं ,
यहाँ तो सोचने से पहले ही टूटने कि गूँज से डर जाती हूँ .
क्या मेरे साथ ही हमेशा ना इंसाफी होती हैं ,
या मैं ज़िन्दगी को जी ही नहीं पाती हूँ ,
लोग कहते हैं सोचो नहीं ,
वो क्या जाने की सोचने की सोच से ही मैं कितना डर जाती हूँ .
नींद टूटने पर तो सब चौक जाते हैं ,
यहाँ तो खुली आखों मैं ही उनकी पुकार से चौक जाती हूँ .
मुझे नहीं कोई समझ पाया ,
या मुझे समझ के भी कोई समझना नहीं चाहता .
हर दिन क़ी शुरुआत एक नयी उम्मीद के साथ करती हूँ ,
और हर रात उस उम्मीद की टूटने की गूँज के साथ सो जाती हूँ .
अब तो आदत हो गयी हैं इस गूँज की ,
की एक दिन भी छूट जाए ,
और उम्मीद पूरी होती नज़र आये तो यकीं नहीं कर पाती हूँ ,
इस उधेड़ - बुन मैं उस पल को भी गवां देती हूँ ,
और फिर उसकी टूटने कि गूँज के साथ सो जाती हूँ .
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Excellent.
ReplyDeleteThanks.
DeleteBahut hi shaandaar, dil ko chhu jaane wali kavita.
ReplyDeleteDhanyawaad.
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